आवाज़(मुकेश शर्मा, दिल्ली): लगता है खट्टर सरकार के सितारे कुछ गर्दिश में चल रहे हैं. विपक्ष जहाँ हर बात पर सरकार को घेर रहा है वहीँ अब सुप्रीम कोर्ट ने भी ज़मीन आवंटन मामले में सरकार को कड़ी फटकार लगाईं है. गौरतलब है कि जमीन आवंटन से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. दरअसल हरियाणा सरकार ने खनन के लिए 558.53 हेक्टेयर जमीन की नीलामी को लेकर निविदा आमंत्रित की थी. एक कंपनी ने इसे हासिल भी किया, लेकिन बाद में पता चला कि जमीन तो महज 141.76 हेक्टेयर ही है. कंपनी ने हरियाणा सरकार को इसकी जानकारी भी दी, लेकिन खट्टर सरकार ने कंपनी की आपत्तियों पर गौर करने से इनकार कर दिया. इसके बाद कंपनी ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी. हालांकि उस समय कोर्ट से कंपनी को झटका लगा. ऐसे में इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी. अब शीर्ष अदालत ने हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस मदन बी. लोकुर की पीठ ने लताड़ लगाते हुए कहा कि सत्ता का फायदा उठाते हुए आप (खट्टर सरकार) लोगों को बेवकूफ मत बनाइए. कोर्ट ने उस नोटिस पर तीखी टिप्पणी की जिसमें 558.53 हेक्टेयर का उल्लेख किया गया था, जबकि हकीकत में जमीन डेढ़ सौ हेक्टेयर भी नहीं थी.
यह मामला करनाल में खनन के लिए जमीन आवंटित करने से जुड़ा है. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को कंपनी द्वारा जमा पैसे को लौटाने का निर्देश दिया है. अब राज्य सरकार को 9% के ब्याज के साथ राशि लौटानी होगी. कोर्ट ने पाया कि कंपनी को जमीन भी दी गई. सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि लैंड एरिया और उसकी साइज की पुष्टि करने का काम कंपनी का है. इस पर कोर्ट के तेवर और सख्त हो गए. पीठ ने कहा, ‘सरकार में होने पर प्रत्येक चीज के लिए आम नागरिकों पर आरोप लगाना बेहद आसान हो जाता है. 558.53 हेक्टेयर के लिए सार्वजनिक निविदा निकाली गई थी. ऐसे में आप (खट्टर सरकार) सिर्फ 141.76 हेक्टेयर ही कैसे दे सकते हैं? इसके बाद आप कह रहे हैं कि जमीन की पुष्टि करने का दायित्व याची (कंपनी) का ही है. आप इस तरह से आमलोगों को मूर्ख नहीं बना सकते हैं. आप सरकार हैं और यह सुनिश्चित करना आपकी जिम्मेदारी है कि जिसको लेकर विज्ञापन निकाला गया वह मुहैया कराया जाए.’ हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान हाई कोर्ट के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं की. (सौजन्य:जनसत्ता डॉट कॉम)